
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद भारतीय लोकतंत्र में बहुत महत्वपूर्ण हैं। पूरे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था इन पदों की गरिमा, जिम्मेदारी और राजनीतिक स्थिरता से प्रभावित होती है। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा पेश किया गया संविधान (130वाँ संशोधन) विधेयक, 2025 ने देश की राजनीति को बदल दिया है। मुख्य प्रावधान इस कानून में है कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री 30 दिन से अधिक समय तक जेल में रहने पर उनके पद से हटा दिया जाएगा।
विधेयक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को विचार करने के लिए भेजा गया है। लेकिन इसे लेकर विपक्षी दल बहुत मतभेद कर रहे हैं। विशेष रूप से, तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने कहा है कि वह JPC में शामिल नहीं होगी। यही कारण है कि भारत की ब्लॉक रणनीति पर भी संदेह है।
विधेयक की मुख्य बातें
विपक्ष को इस विधेयक में कई प्रावधान चिंतित कर रहे हैं। आइए संक्षेप में देखें कि इसमें प्रस्तावित क्या-क्या बदलाव हैं:
प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री को पद से हटा दिया जाएगा अगर वे गंभीर अपराधों में गिरफ्तार होकर 30 दिनों तक जेल में रहते हैं। राष्ट्रपति (केंद्र) या राज्यपाल (राज्य) पद से हटाने का निर्णय करेंगे। नेताओं को बेल बाद में मिल सकती है।
यह विधेयक संविधान संशोधन से संबंधित होने के कारण दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। केंद्रीय सरकार ने इसे भ्रष्टाचार और जवाबदेही को कम करने का प्रयास बताया है।
विपक्ष की आपत्तियाँ
विरोधी पक्ष का कहना है कि यह विधेयक संविधान और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर हमला है। ये उनके प्रमुख मुद्दे हैं:
1. निर्दोषता की भावना का अपमान भारतीय न्याय प्रणाली का सिद्धांत है कि कोई भी व्यक्ति निर्दोष नहीं माना जाएगा जब तक कि अदालत दोष सिद्ध नहीं कर देती। विपक्ष का कहना है कि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को सिर्फ 30 दिन की कैद में रहने भर से हटाना इस सिद्धांत के खिलाफ है।
2. राजनीतिक हथियारों की उत्पत्ति का खतरा विपक्ष को डर है कि सरकार सीबीआई, ईडी और अन्य संस्थाओं का दुरुपयोग करके अपने प्रतिद्वंद्वी नेताओं को जेल में डाल सकती है। इससे चुनी हुई सरकारों की अस्थिरता हो सकती है।
3. संविधान की मूल प्रणाली पर खतरा कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि यह विधेयक संविधान का आधारभूत अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इसे “तानाशाही की ओर बढ़ता कदम” कहा।
4. सरकार को बहुमत नहीं है एनडीए को विपक्ष का दो-तिहाई बहुमत नहीं है। यही कारण है कि यह बिल संसद में पास होना बहुत मुश्किल है, और अगर ऐसा हो भी गया, तो न्यायालय में टिक नहीं पाएगा।
सरकार का पक्ष
गृहमंत्री अमित शाह ने इस कानून का समर्थन करते हुए कहा कि: कानून सभी को समान होना चाहिए। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री सब एक हैं। ” उनका आरोप था कि विपक्ष भ्रष्ट नेताओं को बचाने के लिए मिल गया है।
सरकार का कहना है कि कोई भी मंत्री या मुख्यमंत्री जेल में रहकर जनता की सेवा नहीं कर सकता। इसे मोदी सरकार ने नैतिक राजनीति और जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है।
JPC को लेकर विवाद
विधेयक को भारी हंगामे के बीच पेश किया गया और संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा गया। समिति में सत्तापक्ष और विपक्ष के 31 सांसद होंगे। TMC की नीति तृणमूल कांग्रेस ने इंडिया ब्लॉक की मीटिंग में कहा कि इस समिति का बहिष्कार पूरे विपक्ष को करना चाहिए।
उनका कहना है कि समिति में जाने का कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि सरकार पहले से ही मजबूत है। TMC ने घोषणा की है कि वह अपने 31 सांसदों में से किसी को भी JPC में भेजना नहीं चाहेगी। अभी तक अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।
बाकी विपक्ष का रुख
कांग्रेस और अन्य पार्टियों का कहना है कि JPC एक ऐसा मंच है जहां विपक्ष अपने मतभेद व्यक्त कर सकता है।
सरकार मनमानी ढंग से बिल पारित करने की कोशिश करेगी अगर विपक्ष समिति में शामिल नहीं होगा। कांग्रेस चाहती है कि विपक्ष JPC में शामिल हो और वहीं से अपनी रणनीति बनाए।
INDIA ब्लॉक में दरार
India गठबंधन में इस मुद्दे पर मतभेद गहराते दिख रहे हैं: कांग्रेस और सहयोगी दल JPC में शामिल होने की इच्छा व्यक्त करते हैं। TMC कहता है कि समिति में शामिल होना समय बर्बाद करेगा।
इसलिए, भारत ब्लॉक अभी तक JPC में अपने सदस्यों के नाम निर्धारित नहीं कर पाया है। यह परिस्थिति दिखाती है कि विरोधियों के बीच एकता कितनी मजबूत है और कहाँ खटपट है।
राजनीतिक निहितार्थ
1. केंद्र और राज्य के बीच संघर्ष यह बिल गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को जोखिम में डाल सकता है। हेमंत सोरेन, तेजस्वी यादव और ममता बनर्जी ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
2. लोकसभा चुनावों का प्रभाव और 2026 के राज्य चुनावों का प्रभाव यह मुद्दा आने वाले चुनावों में महत्वपूर्ण राजनीतिक हथियार बन सकता है। जनता के बीच इसे “तानाशाही का बिल” कहकर विपक्ष माहौल बनाएगा।
3. कानून की चुनौती बिल भी पास होने पर सुप्रीम कोर्ट में इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठेंगे। यह एक लंबी कानूनी बहस का विषय हो सकता है।
निष्कर्ष
130वाँ संविधान संशोधन विधेयक ने भारतीय राजनीति को हिला दिया है। विपक्षी इसे संघवाद और लोकतंत्र पर हमला बता रहा है, लेकिन सरकार इसे पारदर्शिता और जवाबदेही का कदम बता रही है।
JPC पर विपक्ष के मतभेद ने यह भी दिखाया कि भारत ब्लॉक की एकजुटता अभी भी पूरी तरह मजबूत नहीं है। TMC की चाल दिखाती है कि विपक्षी गठबंधन को रणनीति पर समझौता करना कितना मुश्किल है।
आने वाले कुछ हफ्तों में क्या देखना दिलचस्प होगा: क्या TMC वास्तव में JPC को छोड़ देता है? कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों के सहयोग से क्या कोई महत्वपूर्ण सुझाव मिल सकता है?
और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या यह विधेयक न्यायपालिका और संसद में सफल होगा? इस बहस ने साफ कर दिया कि भारतीय राजनीति में जवाबदेही बनाम राजनीतिक दुरुपयोग की बहस लंबे समय तक जारी रहेगी।
PM-CM Removal Bill 2025: क्या है विवादित प्रावधान?
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सरकार का तर्क: जवाबदेही और नैतिक राजनीति
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(About Author)
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