
भारत में बच्चों, गर्भवती महिलाओं और नवजात माताओं का जीवन सुधार करने में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, चाहे ग्रामीण हो या शहरी। वे न केवल शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य क्षेत्रों में काम करती हैं, बल्कि हर घर जाकर समाज का एक हिस्सा बन जाती हैं। इन्हें वर्षों से अपनी मेहनत का बहुत कम मानदेय मिला है।
गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं का वेतन बढ़ा दिया है। यह निर्णय न सिर्फ आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है।
हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
- आंगनबाड़ी कार्यकर्ता: 10,000 रुपये → 24,800 रुपये प्रतिमाह
- आंगनबाड़ी सहायिका: 5,500 रुपये → 20,300 रुपये प्रतिमाह
यह बढ़ोतरी लगभग ढाई गुना है, जो कार्यकर्ताओं के लिए बेहद राहत देने वाली है।
आदेश कब से होगा लागू?
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि नया वेतनमान 1 अप्रैल 2025 से लागू होगा। इसके अलावा, सभी कर्मचारियों और सहायिकाओं को पिछले पाँच महीनों का भुगतान भी मिलेगा।
मुख्य बात यह है कि इसके लिए किसी अलग प्रक्रिया या आवेदन की आवश्यकता नहीं होगी। पूरे गुजरात राज्य में आंगनबाड़ी केंद्रों पर यह आदेश स्वतः लागू होगा।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की भूमिका
आंगनबाड़ी केंद्र सरकार की एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण भाग हैं। कर्मचारी और सहायिकाएँ— बच्चों को पोषक आहार मिलता है। स्तनपान कराने वाली और गर्भवती माताओं की देखभाल करती हैं। टीकाकरण और स्वास्थ्य शिविर में सहायता प्रदान करती हैं।
पोषण शिक्षा और प्राथमिक शिक्षा दोनों काम करती हैं। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाती है। इन्हें इतनी जिम्मेदारियों के बावजूद वर्षों से बहुत कम मानदेय मिला है।
कार्यकर्ताओं की भावनाएँ और प्रतिक्रिया
फैसले से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के चेहरे मुस्कुरा रहे हैं। लंबे समय से वेतन वृद्धि की मांग कर रही महिलाओं को अब सम्मान महसूस होता है। वर्षों तक हमने समाज की सेवा की है।
हमें लगता था कि सरकार हमारी कोशिशों को भुला रही है। लेकिन अब न्यायालय की निर्णय ने हमें प्रेरित किया है। “–
आंगनबाड़ी कर्मचारी यह प्रतिक्रिया बताती है कि यह फैसला न्याय और आत्मसम्मान का प्रतीक है, न कि सिर्फ वेतन वृद्धि।
महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा कदम
भारत में लगभग 14 लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं। इनमें से अधिकांश महिलाएँ ग्रामीण हैं। इस भत्ता में वृद्धि से: महिलाएँ आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो जाएंगी। वे अपने बच्चों के भविष्य, स्वास्थ्य और शिक्षा पर अधिक खर्च कर सकते हैं।
उनका काम समाज में महत्वपूर्ण होगा। महिला सशक्तिकरण नई राह पर चलेगा। यह निर्णय महिला सम्मान और समान अधिकार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
आर्थिक और सामाजिक असर
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का जीवन स्तर इस सुधार से बेहतर होगा। अब वे— घर की दैनिक आवश्यकताओं को आसानी से पूरा कर पाएंगे। पोषण और स्वास्थ्य देखभाल पर अधिक खर्च कर पाएंगे।
बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना पूरा होगा। उनका आर्थिक योगदान परिवार में बढ़ेगा। सामाजिक दृष्टि से यह कदम महिलाओं की मेहनत को अब स्वीकार करता है।
अन्य राज्यों पर असर
यह आदेश फिलहाल गुजरात तक सीमित है, लेकिन यह पूरे देश पर असर करेगा। इससे प्रेरित होकर दूसरे राज्यों की सरकारें भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के वेतनमान की समीक्षा कर सकती हैं।
आने वाले महीनों में बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के वेतन पर सकारात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
चुनौतियाँ और सवाल
लेकिन यह ऐतिहासिक निर्णय कुछ समस्याओं का सामना करता है:
1. खर्च पर असर राज्य सरकार को अधिक धन की आवश्यकता होगी।
2. समानता का मुद्दा: यदि अन्य राज्यों में यह बढ़ोतरी नहीं हुई तो कार्यकर्ताओं में असमानता का भाव बढ़ सकता है।
3. नियमितीकरण की आवश्यकता वर्षों से कर्मचारी स्थायी नौकरी और पेंशन की मांग करते रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को वेतन में वृद्धि के अलावा नियमित कर्मचारी का दर्जा भी मिलना चाहिए।
व्यापक प्रभाव
यह निर्णय केवल आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं तक नहीं सीमित रहेगा, बल्कि देश में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को भी अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित करेगा।
न्यूनतम वेतन और सम्मानजनक नौकरी के अधिकार का स्मरण कराया जाएगा। न्यायपालिका की संवेदनशीलता सामने आएगी।
भविष्य की राह
यह निर्णय आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए शुरूआत है। भविष्य में इसे सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम, बीमा और पेंशन सुविधाएँ,
प्रशिक्षण और क्षमता विकास, स्थायी नौकरी मिलना चाहिए, ताकि ये महिलाएँ अधिक शक्तिशाली बन सकें। —–
निष्कर्ष
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के लिए गुजरात हाईकोर्ट की निर्णय एक ऐतिहासिक जीत है। दशकों से समाज की सेवा करने वाली इन महिलाओं को अंततः उनका हक मिला है।
यह कदम न केवल आर्थिक राहत देगा, बल्कि महिला सशक्तिकरण, सामाजिक न्याय और समान अधिकार की दिशा में एक मील का पत्थर होगा। इस फैसले को अब पूरा देश एक उदाहरण के रूप में देख रहा है।
यदि अन्य राज्य भी इसका पालन करते हैं, तो आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की जिंदगी बदल सकती है।
(About the Author)
Sunny Mahto एक उत्साहपूर्ण ब्लॉगर हैं, जो मुख्य रूप से सरकारी योजनाओं (Sarkari Yojana), शिक्षा (Education) और ताजा खबरों (Latest News) पर लेख लिखते हैं। इनका लक्ष्य पाठकों को भरोसेमंद और विस्तृत जानकारी प्रदान करना है ताकि वे सरकारी योजनाओं और नौकरी की जानकारी का सही लाभ उठा सकें।
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